संबोध की परिकल्पना करते समय यही विचार मन में था कि मौलिक एवं स्वतंत्र विचारों को एवं समसामयिक विषयों को लेखनीबद्ध करके कोई भी शोध समाज राष्ट्र और संपूर्ण मानवता के उन्नयन में योगदान करके दिशा प्रदान करता है। इन्ही विचारों से अभिप्रेरित होकर संबोध पत्रिका का सृजन किया गया। विधिक औपचारिकताओं की पूर्ति के बाद तब से अद्यतन आज तक इसे परिमार्जित उत्त्कृष्ट बनाने का सतत प्रयास जारी है। इस पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्रों की मौलिकता एवं गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के उपरांत ही प्रकाशित करने की चेष्टा की जाती है।